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नज़्म
किस की नौ-मीदी पे हुज्जत है ये फ़रमान-ए-जदीद
है जिहाद इस दौर में मर्द-ए-मुसलमाँ पर हराम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिटा देता है दम में नख़वत-ए-नमरूद इक मच्छर
कभी ऐसा भी दौर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम आता है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
रंगीनी-ए-बहार थी जिस दिल में जल्वा-रेज़
अब उस में दौर-ए-फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ है तिरे बग़ैर
शैदा अम्बालवी
नज़्म
मिटा देता है दम में नख़वत-ए-नमरूद इक मच्छर
कभी ऐसा भी दौर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम आता है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
वो चाँदनी की हसीं वादियों में रक़्साँ हैं
वो दौर-ए-पैकर-ए-रूमाँ जुनूँ-ब-दामाँ हैं
सिद्दीक़ कलीम
नज़्म
फ़राज़-ए-कोह-ए-हिमाला ये दौर-ए-गंग-ओ-जमन
और इन की गोद में पर्वर्दा कारवानों ने