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नज़्म
वज़्अ में तुम हो नसारा तो तमद्दुन में हुनूद
ये मुसलमाँ हैं जिन्हें देख के शरमाएँ यहूद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
देख मिरी जाँ कह गए बाहू कौन दिलों की जाने 'हू'
बस्ती बस्ती सहरा सहरा लाखों करें दिवाने 'हू'
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जो है इक नंग-ए-हस्ती उस को तुम क्या जान भी लोगे
अगर तुम देख लो मुझ को तो क्या पहचान भी लोगे
जौन एलिया
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क्या दाख मुनक़्का सोंठ मिरच क्या केसर लौंग सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तू ने क्या देखा नहीं मग़रिब का जमहूरी निज़ाम
चेहरा रौशन अंदरूँ चंगेज़ से तारीक-तर