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नज़्म
मेरे सपने बुनती होंगी बैठी आग़ोश पराई में
और मैं सीने में ग़म ले कर दिन-रात मशक़्क़त करता हूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दुनिया को ज़रूरत है उन की जो तलवारों को प्यार करें
जो क़ौम ओ वतन के क़दमों पर क़ुर्बानी दें ईसार करें
आमिर उस्मानी
नज़्म
पेश-तर इस के कि हम फिर से मुख़ालिफ़ सम्त को
बे-ख़ुदा-हाफ़िज़ कहे चल दें झुका कर गर्दनें
अहमद फ़राज़
नज़्म
'रहीम' 'नानक' ओ 'चैतन्य' और 'चिश्ती' ने
इन्हीं फ़ज़ाओं में बचपन के दिन गुज़ारे थे
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अजब नहीं मिरे लफ़्ज़ मुझ को मुआ'फ़ कर दें
हवा-ओ-हिर्स-ओ-हवस की सब गर्द साफ़ कर दें
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
रगों से उलझती हुई साँस के साथ कस दें
उन्हें रात के सुरमई हाथ ख़ैरात में नींद कब दे सके हैं
मोहसिन नक़वी
नज़्म
अपनी ग़ैरत बेच डालीं अपना मस्लक छोड़ दें
रहनुमाओं में भी कुछ लोगों का ये मंशा तो है