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नज़्म
कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार
ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
अयाँ हैं दुश्मनों के ख़ंजरों पर ख़ून के धब्बे
उन्हें तू रंग-ए-आरिज़ से मिला लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
क्यूँ दाद-ए-ग़म हमीं ने तलब की बुरा किया
हम से जहाँ में कुश्ता-ए-ग़म और क्या न थे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं
तुम लोग जिन्हें अपना न सके वो ख़ून के धारे पूछते हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गोया फिर ख़्वाब से बेदार हुए दुश्मन-ए-जाँ
संग-ओ-फौलाद से ढाले हुए जन्नात-ए-गिराँ