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नज़्म
मक्का है या ज़मुर्रद तन कर खड़े हुए हैं
धानों की बालियों में हीरे जड़े हुए हैं
अब्र अहसनी गनौरी
नज़्म
इरफ़ान शहूद
नज़्म
सब्ज़ धानों का वो ता-हद्द-ए-नज़र इक सिलसिला
वो घने पौदे नज़र को थी न तिल रखने की जा
सयय्द महमूद हसन क़ैसर अमरोही
नज़्म
मनहूस समाजी ढाँचों में जब ज़ुल्म न पाले जाएँगे
जब हाथ न काटे जाएँगे जब सर न उछाले जाएँगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
नादान हैं वो जो छेड़ते हैं इस आलम में नादानों को
उस शख़्स से एक जवाब मिला सब अपनों को बेगानों को
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
या छोड़ें या तकमील करें ये इश्क़ है या अफ़साना है
ये कैसा गोरख-धंदा है ये कैसा ताना-बाना है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
मफ़रूर न हो तलवारों पर मत फूल भरोसे ढालों के
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
न हो नौमीद नौमीदी ज़वाल-ए-इल्म-ओ-इरफ़ाँ है
उमीद-ए-मर्द-ए-मोमिन है ख़ुदा के राज़-दानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अफ़्लास-ज़दा दहक़ानों के हल बैल बिके खलियान बिके
जीने की तमन्ना के हाथों जीने के सब सामान बिके