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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
और रह जाते हैं हम हक्का-बक्का
जिस मफ़्हूम पर सर धुनते आए थे कल तक कितना सतही कितना अधूरा था वो
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
सज्जाद बाक़र रिज़वी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
क्या क्या न दिल-ए-ज़ार ने ढूँडी हैं पनाहें
आँखों से लगाया है कभी दस्त-ए-सबा को