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नज़्म
या'नी हर ज़र्रे से दुनिया के ख़ुशी है आश्कार
है मगर मेरा दिल-ए-सद-चाक अब तक बे-क़रार
साक़िब कानपुरी
नज़्म
न ना’रा इंक़लाब-ए-नौ का न ग़ैबी निदा यारो
फ़क़त हूँ इक दिल-ए-सद-चाक से निकली सदा यारो
सदा अम्बालवी
नज़्म
इक ऐसा ख़्वाब जिस के दामन-ए-सद-चाक में कोई मुबारक कोई रौशन दिन नहीं था
अभी कुछ दिन लगेंगे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
जान लेते हैं कि अब वो रात ही दरमाँ बनेगी दर्द के अम्बार का
जिस के बिखरे दामन-ए-सद-चाक में