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नज़्म
ज़मीन नश्शा, ज़मान नश्शा, जहान नश्शा, मकान नश्शा
मकान क्या? ला-मकान नश्शा, डुबो रहे हैं पिला रहे हैं
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
बहुत मुमकिन है इन लहरों में आ जाए किनारा भी
डुबो दे दो दिलों को इतना ज़ालिम हो नहीं सकता
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
जो मैं बोला तो गोयाई ज़माने-भर की खो दूँगा
जो मैं बोला तो दुनिया को ख़मोशी में डुबो दूँगा
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
या मुझे क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ुद-फ़रामोशी-ए-मावरा में डुबो ले
ख़्वाब-दर-ख़्वाब बस एक ही ख़्वाब है