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नज़्म
शरफ़ में बढ़ के सुरय्या से मुश्त-ए-ख़ाक उस की
कि हर शरफ़ है इसी दर्ज का दुर-ए-मकनूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सेहर ओ एजाज़ लिए जुम्बिश-ए-मिज़्गान-ए-दराज़
ख़ंदा-ए-शोख़ जमाल-ए-दुर-ए-ख़ुश-आब लिए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ग़ुल न कर आहिस्ता आहिस्ता हो ऐ जमुना रवाँ
ताज-ए-इस्मत का यहाँ हर इक दुर-ए-यकता निहाँ
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
यूँ तेरे दिल-ए-साफ़ में इशराक़-ए-मोहब्बत
जिस तरह कि लौ सुब्ह को दे दुर्रे-ए-नया-गोश
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
आब-दारी में है बढ़-चढ़ कर दुर-ए-ग़लताँ से तू
क्या मुशाबह है किसी के गौहर-ए-दंदाँ से तू
हामिद हसन क़ादरी
नज़्म
फिर भी इक ख़ामुशी-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ हूँ मैं
दौर-ए-ज़ुल्मत का हर इक नक़्श मिटाया मैं ने