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नज़्म
दश्त के काम-ओ-दहन को दिन की तल्ख़ी से फ़राग़
दूर दरिया के किनारे धुँदले धुँदले से चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
गुलों के रंग में थी शान-ए-ख़ंदा-ए-यूसुफ़
कली के साज़ में था लुत्फ़-ए-नग़्मा-ए-दाऊद
जोश मलीहाबादी
नज़्म
घुटी हुई है नफ़स की हद में जला दिया जो जला सकी है
न शम्अ बन कर पिघल सकी है न आज तक दूद बन के निकली
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
वो चिता की आतिश-ए-जाँ-सोज़ वो दूद-ए-सियाह
शौहर-ए-मुर्दा का सर वो ज़ानू-ए-नाज़ुक पे आह
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
चीख़ें शो'लों के दहकने पे लपक उठती थीं
दूद के हल्क़े रवाँ होए फ़लक चर्ख़ ज़नाँ