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नज़्म
फ़राईन-ए-कुहन ढल जाएँ चाहे पैकर-ए-नौ में
समुंदर को सितमगर-हाथ गर तेज़ाब कर डालें
गुफ़्तार ख़याली
नज़्म
उरूक़-मुर्दा-ए-मशरिक़ में ख़ून-ए-ज़िंदगी दौड़ा
समझ सकते नहीं इस राज़ को सीना ओ फ़ाराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये बातें झूटी बातें ये लोगों ने फैलाईं हैं
तुम 'इंशा'-जी का नाम न लो क्या 'इंशा'-जी सौदाई हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
किस की नौ-मीदी पे हुज्जत है ये फ़रमान-ए-जदीद
है जिहाद इस दौर में मर्द-ए-मुसलमाँ पर हराम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इन दमकते हुए शहरों की फ़रावाँ मख़्लूक़
क्यूँ फ़क़त मरने की हसरत में जिया करती है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो फ़राएज़ का तसलसुल नाम है जिस का हयात
जल्वा-गाहें उस की हैं लाखों जहान-ए-बे-सबात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दश्त के काम-ओ-दहन को दिन की तल्ख़ी से फ़राग़
दूर दरिया के किनारे धुँदले धुँदले से चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
फ़राज़-ए-कोह-ए-हिमाला ये दौर-ए-गंग-ओ-जमन
और इन की गोद में पर्वर्दा कारवानों ने