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नज़्म
किस की नौ-मीदी पे हुज्जत है ये फ़रमान-ए-जदीद
है जिहाद इस दौर में मर्द-ए-मुसलमाँ पर हराम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लेकिन आज अख़्लाक़ की तल्क़ीन फ़रमाते हो तुम
हो न हो अपने में अब क़ुव्वत नहीं पाते हो तुम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
कोई क़ुव्वत उस की सद्द-ए-राह बन सकती नहीं
वक़्त का फ़रमान जब आता है बन कर इंक़िलाब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
'ज़ेहरा' ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है!
दीवार पे टांगा था फ़रमान रिफ़ाक़त का
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
महफ़िल-ए-ज़ीस्त पे फ़रमान-ए-क़ज़ा जारी है
शहर तो शहर है गाँव पे भी बम्बारी है