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नज़्म
अपने परवानों को फिर ज़ौक़-ए-ख़ुद-अफ़रोज़ी दे
बर्क़-ए-देरीना को फ़रमान-ए-जिगर-सोज़ी दे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किस की नौ-मीदी पे हुज्जत है ये फ़रमान-ए-जदीद
है जिहाद इस दौर में मर्द-ए-मुसलमाँ पर हराम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
'ज़ेहरा' ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है!
दीवार पे टांगा था फ़रमान रिफ़ाक़त का
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
महफ़िल-ए-ज़ीस्त पे फ़रमान-ए-क़ज़ा जारी है
शहर तो शहर है गाँव पे भी बम्बारी है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दस्तूर-ए-अदालत के लिए उस का क़लम था
फ़रमान-ए-रेआ'या के लिए उस की ज़बाँ थी
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
सेहर-ए-मौसीक़ी हुआ फिर गूँज उठे गोकुल के बन
रक़्स फ़रमाने लगी फिर वादी-ए-गंग-ओ-जमन
अर्श मलसियानी
नज़्म
तितलियाँ अपने परों पर पा के क़ाबू हर तरफ़
सेहन-ए-गुलशन की रविश पर रक़्स फ़रमाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
सिर्फ़ तारीख़ मैं चमके मिरा फ़रमान-ए-शही
शाही दरबार में वज़ीर-ए-बा-तदबीर का मशवरा
इलियास बाबर आवान
नज़्म
दूसरे साहब ने फ़रमाया कि ओ नादान चुप
बात तू ने किस लिए की हो गई फ़ासिद नमाज़