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नज़्म
ऐ उम्र-ए-रफ़्ता तू ने की मुझ से बे-वफाई
आ जा पलट के दम भर मैं हूँ तिरा फ़िदाई
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
कृष्न सदक़े हैं तो राधा हैं फ़िदाई जमुना
हर तरफ़ ख़ल्क़ में है तेरी दहाई जमुना
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
ऐ अंदलीब-ए-गुलशन मैं हूँ तिरा फ़िदाई
इस सौत-ए-जाँ-फ़ज़ा की अल्लह रे दिल-रुबाई
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
चाहते सब हैं कि हों औज-ए-सुरय्या पे मुक़ीम
पहले वैसा कोई पैदा तो करे क़ल्ब-ए-सलीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मगर गुज़ारने वालों के दिन गुज़रते हैं
तिरे फ़िराक़ में यूँ सुब्ह ओ शाम करते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सुना है हो भी चुका है फ़िराक़-ए-ज़ुल्मत-ओ-नूर
सुना है हो भी चुका है विसाल-ए-मंज़िल-ओ-गाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
यूँ गुमाँ होता है गरचे है अभी सुब्ह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सरिश्क-ए-चश्म-ए-मुस्लिम में है नैसाँ का असर पैदा
ख़लीलुल्लाह के दरिया में होंगे फिर गुहर पैदा