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नज़्म
तुम से क़ुव्वत ले कर अब मैं तुम को राह दिखाऊँगा
तुम परचम लहराना साथी मैं बरबत पर गाऊँगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मगर पहले कभी तुम से मिरा कुछ सिलसिला तो था
गुमाँ में मेरे शायद इक कोई ग़ुंचा खिला तो था
जौन एलिया
नज़्म
हिम्मत-ए-आली तो दरिया भी नहीं करती क़ुबूल
ग़ुंचा साँ ग़ाफ़िल तिरे दामन में शबनम कब तलक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शाहिद-ए-मज़्मूँ तसद्दुक़ है तिरे अंदाज़ पर
ख़ंदा-ज़न है ग़ुंचा-ए-दिल्ली गुल-ए-शीराज़ पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक तरफ़ आवाज़ का सूरज एक तरफ़ इक गूँगी शाम
एक तरफ़ जिस्मों की ख़ुशबू एक तरफ़ उस का अंजाम
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
न ख़ातूनों में रह जाएगी पर्दे की ये पाबंदी
न घूँघट इस तरह से हाजिब-ए-रू-ए-सनम होंगे