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नज़्म
इलाही फिर मज़ा क्या है यहाँ दुनिया में रहने का
हयात-ए-जावेदाँ मेरी न मर्ग-ए-ना-गहाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़िंदगी की ओज-गाहों से उतर आते हैं हम
सोहबत-ए-मादर में तिफ़्ल-ए-सादा रह जाते हैं हम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नशात इस विसाल-ए-रह-गुज़र की ना-गहाँ मुझे निगल गई
यही प्याला-ओ-सुराही-ओ-सुबू का मरहला है वो
नून मीम राशिद
नज़्म
ना-गहाँ आज मिरे तार-ए-नज़र से कट कर
टुकड़े टुकड़े हुए आफ़ाक़ पे ख़ुर्शीद ओ क़मर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
देखती थी मैं भी ये हुस्न-ए-चमन रंग-ए-बहार
ना-गहाँ आई सदा-ए-दिल कि ग़ाफ़िल होशियार
शहज़ादी कुलसूम
नज़्म
दस्त-ए-जादू-गर से जैसे फूट निकले हों तिलिस्म
इश्क़-ए-हासिल-ख़ेज़ से या ज़ोर-ए-पैदाई से जैसे ना-गहाँ
नून मीम राशिद
नज़्म
छा गई बरसात की पहली घटा अब क्या करूँ
ख़ौफ़ था जिस का वो आ पहुँची बला अब क्या करूँ