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नज़्म
सारे ख़्वाबों का गला घूँट दिया है मैं ने
अब न लहकेगी किसी शाख़ पे फूलों की हिना
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जब तलक रिश्वत न लें हम दाल गल सकती नहीं
नाव तनख़्वाहों के पानी में तो चल सकती नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फिर आ गया है मुल्क में क़ुर्बानियों का माल
की इख़्तियार क़ीमतों ने राकेटों की चाल