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नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
फ़ज़ा में घुल से गए हैं उफ़ुक़ के नर्म ख़ुतूत
ज़मीं हसीन है ख़्वाबों की सरज़मीं की तरह
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जो मरहलों में साथ थे वो मंज़िलों पे छुट गए
जो रात में लुटे न थे वो दोपहर में लुट गए
आमिर उस्मानी
नज़्म
जिन्हें कमसिनों ने चाहा कि लपक के प्यार कर लें
जिन्हें महवशों ने माँगा कि गले का हार कर लें