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नज़्म
है लहद इस क़ुव्वत-ए-आशुफ़्ता की शीराज़ा-बंद
डालती है गर्दन-ए-गर्दूं में जो अपनी कमंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
या ख़ुदा ये मिरी गर्दान-ए-शब-ओ-रोज़-ओ-सहर
ये मिरी उम्र का बे-मंज़िल ओ आराम सफ़र
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
नज़्म
तेरी ही गर्दन-ए-रंगीं में हैं बाँहें अपनी
तेरे ही इश्क़ में हैं सुब्ह की आहें अपनी
जोश मलीहाबादी
नज़्म
दोश पर गर्दन-ए-ख़म सलामत रहे
कर्बलाओं में उतरे हुए कारवानों की मश्कों का पानी अमानत रहे
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
हर तरफ़ शोर है फ़रियाद है बर्बादी है
रू-ए-गर्दूं पे मचलते हुए तूफ़ाँ को देख
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
नज़्म
गुम्बद-ए-गर्दूं पे अब तख़्ईल की परवाज़ थी
दिल की धड़कन जैसे इस्राफ़ील की आवाज़ थी
बर्क़ आशियान्वी
नज़्म
बज़्म-ए-गर्दूँ पर हुआ है अंजुमन-आरा कोई
झाँकता पर्दे से है शायद ये मह-पारा कोई