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नज़्म
जब धरती करवट बदलेगी जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे जब ज़ुल्म के बंधन टूटेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बद-हाल घरों की बद-हाली बढ़ते बढ़ते जंजाल बनी
महँगाई बढ़ कर काल बनी सारी बस्ती कंगाल बनी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये मेरा झोंपड़ा तारीक है गंदा है परागंदा है
हाँ कभी दूर दरख़्तों से परिंदों की सदा आती है
नून मीम राशिद
नज़्म
वो रोज़ काग़ज़ पे अपना चेहरा लिखता और गंदा होता
उस की औरत जो ख़ामोशी काढ़े बैठी थी
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
जिन्हें बुत-गरों ने चाहा कि सनम बना के पूजें
ये जो दूर के हसीं हैं उन्हें पास ला के पूजें