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नज़्म
न ख़ातूनों में रह जाएगी पर्दे की ये पाबंदी
न घूँघट इस तरह से हाजिब-ए-रू-ए-सनम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
बंदर को सेहरा बाँध के हम दूल्हा न बनाएँगे अम्मी
अब घूँघट काढ़ बंदरिया को डोली में बिठाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
मौत ने कितने घूँघट मारे बदले सौ सौ भेस
काल बकुट फैलाए रहा है बीमारी का जाल रे साथी
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
जब आई होली रंग-भरी सौ नाज़-ओ-अदा से मटक मटक
और घूँघट के पट खोल दिए वो रूप दिखला चमक चमक