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नज़्म
मिरी गोदी में रफ़्ता रफ़्ता दिन गुज़रा किए और तुम
न जाने सोते सोते मेरे सीने पर जवानी तक
अफ़ीफ़ सिराज
नज़्म
फिर एक घड़ी ऐसी आई सब चीज़ें हो गई पराई
उन्हीं माँ बाप ने तो फिर कर दी मेरी पुर्वाई
अंकिता गर्ग
नज़्म
यहाँ पानी के धारे पर चराग़-ए-ज़ीस्त जलते हैं
यहाँ मौजों की गोदी में कई मल्लाह पलते हैं
मयकश अकबराबादी
नज़्म
गोदी में जिस की खेले थे भीम राम भीषम
जिन के सबब से अब तक है हिन्दियों में दम-ख़म
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
गोदी में जिस की अब तक गामा सा पहलवाँ है