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नज़्म
तुम ही उर्दू के गुलिस्ताँ में ख़ुश-इलहान नहीं
किश्त-ए-बंगाल गुल-अफ़शाँ है तुम्हारा क्या है
अफ़ज़ल हुसैन अफ़ज़ल
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
'अर्ज़ करता हूँ ब-सद 'इज्ज़-ओ-अदब जान-ए-जहाँ
दामन-ए-गुल में पर-अफ़्शाँ तिरी ख़ुशबू को सलाम
काज़िम रिज़वी
नज़्म
ने मजाल-ए-शिकवा है ने ताक़त-ए-गुफ़्तार है
ज़िंदगानी क्या है इक तोक़-ए-गुलू-अफ़्शार है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
धूप नगर के बासी हैं हम धूप की पहरे-दारी है
धूप-नगर में धूप के खे़मे धूप की ही गुल-कारी है
शबाना नज़ीर
नज़्म
हो कुछ इस तरह गुल-अफ़्शानी-ए-अर्बाब-ए-सुख़न
जिस से पामाली-ए-गुलबाँग-ए-अनादिल हो जाए
सरीर काबिरी
नज़्म
उफ़ ये शबनम से छलकते हुए फूलों के अयाग़
इस चमन में हैं अभी दीदा-ए-पुर-नम कितने