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नज़्म
फ़िक्र ओ एहसास के शादाब गुलिस्तानों से
तुम ने कलियाँ ही चुनीं मैं ने तो काँटे भी चुने
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
इस गुलिस्ताँ में मगर देखने वाले ही नहीं
दाग़ जो सीने में रखते हों वो लाले ही नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गुज़र जा बन के सैल-ए-तुंद-रौ कोह ओ बयाबाँ से
गुलिस्ताँ राह में आए तो जू-ए-नग़्मा-ख़्वाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये भी इक सरमाया-दारों की है जंग-ए-ज़रगरी
इस सराब-ए-रंग-ओ-बू को गुलिस्ताँ समझा है तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरा रोना नहीं रोना है ये सारे गुलिस्ताँ का
वो गुल हूँ मैं ख़िज़ाँ हर गुल की है गोया ख़िज़ाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो इक मिज़राब है और छेड़ सकती है रग-ए-जाँ को
वो चिंगारी है लेकिन फूँक सकती है गुलिस्ताँ को
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मीराजी
नज़्म
फूल क्या ख़ार भी हैं आज गुलिस्ताँ-ब-कनार
संग-रेज़े हैं निगाहों में गुहर आज की रात