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नज़्म
जब कि मंज़िल की तजस्सुस में था गुमराह-ए-सफ़र
चल दिया छोड़ के क्यों राह दिखाने वाला
ख़ुर्शीद अलीग
नज़्म
तेरे रिश्ते-दार भी हैं अब तिरे बद-ख़्वाह देख
कर रहे हैं जो तुझे सुब्ह-ओ-मसा गुमराह देख
असद जाफ़री
नज़्म
नफ़रत को मोहब्बत कभी इंसान को हैवान..... हैवान बनाया
जिस राह पे चलते रहे गुमराह मुसाफ़िर
पैग़ाम आफ़ाक़ी
नज़्म
मेरी जेबों में तेरे सिक्के खनक रहे हैं
नवा-ए-गुमराह-ए-दश्त-ए-शब के नुजूम तेरी हथेलियों पर चहक रहे हैं
जावेद अनवर
नज़्म
गुमराह न हों भूले-भटके उम्मीद शुआ'-ए-माह बने
हिम्मत से काँटा फूल बने हर ज़र्रा चराग़-ए-राह बने
साक़िब कानपुरी
नज़्म
यूँ गुमाँ होता है गरचे है अभी सुब्ह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तुम्हारे दिल के इस दुनिया से कैसे सिलसिले होंगे
तुम्हें कैसे गुमाँ होंगे तुम्हें कैसे गिले होंगे
जौन एलिया
नज़्म
ख़ुदा-ए-लम-यज़ल का दस्त-ए-क़ुदरत तू ज़बाँ तू है
यक़ीं पैदा कर ऐ ग़ाफ़िल कि मग़लूब-ए-गुमाँ तू है