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नज़्म
असर कुछ ख़्वाब का ग़ुंचों में बाक़ी है तू ऐ बुलबुल
नवा-रा तल्ख़-तरमी ज़न चू ज़ौक़-ए-नग़्मा कम-याबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कितनी सदियों से ये वहशत का चलन जारी है
कितनी सदियों से है क़ाएम ये गुनाहों का रिवाज
साहिर लुधियानवी
नज़्म
क्यूँ जी पर बोझ उठाता है इन गौनों भारी भारी के
जब मौत का डेरा आन पड़ा फिर दूने हैं ब्योपारी के
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मगर ग़ुंचों की सूरत हूँ दिल-ए-दर्द-आश्ना पैदा
चमन में मुश्त-ए-ख़ाक अपनी परेशाँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं जिस के आँचलों में मुँह छुपा के रो न सका
वो माँ कि घुटनों से जिस के कभी लिपट न सका
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ख़िराम-ए-नाज़ पाया आफ़्ताबों ने सितारों ने
चटक ग़ुंचों ने पाई दाग़ पाए लाला-ज़ारों ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
देखे हैं इस से बढ़ के ज़माने ने इंक़लाब
जिन से कि ब-गुनाहों की उम्रें हुईं ख़राब