aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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इक़बाल की बातें (गुस्ताख़ी होती है)मज्ज़ूब की बड़ हैं
ये वक़्त की ही गुस्ताख़ी है जो गुज़रने से कभी बाज़ नहीं आताअगर मैं ठहरा हुआ न होता तो न जाने वक़्त कैसे गुज़रता
मैं ने देखी है मगर दोनों की ये गुस्ताख़ीमैं ख़बर देता हूँ अख़बार को देखो तो सही
अब उस की मुस्कुराहट में चुभन हैऔर उस के हाथ गुस्ताख़ी के जूया हो चले हैं
एक इल्ज़ाम था गुस्ताख़ी काऔर बलवाई हज़ारों में
ग़ाफ़िल आदाब से सुक्कान-ए-ज़मीं कैसे हैंशोख़ ओ गुस्ताख़ ये पस्ती के मकीं कैसे हैं
ये फूलों के गजरे ये पीकों के छींटेये बेबाक नज़रें ये गुस्ताख़ फ़िक़रे
वो इक गुस्ताख़ मुँह-फट आईनाजो दिल का अच्छा था
ज़र्रों को महर-अफ़्शानियाँक़तरों को दरिया-गुस्तरी
दामन-ए-दिल को थाम लेती हैकितनी गुस्ताख़ है तुम्हारी याद
कि इस स्याही की मेहर अपनी जबीं पे हर हाल में लगाऊँअगर न गुस्ताख़ मुझ को समझें
कौन है ये गुस्ताख़ताख़ तड़ाख़!
सोचने वालेगुस्ताख़ हैं
उस की गुस्ताख़-निगाही ने किया उस को हलाककिश्वर-ए-हुस्न में जारी है यही शर-ए-कुहन
कौन गुस्ताख़ है क्या नाम है क्यूँ आया हैपहरे वालो उसे ख़ंजर की अनी से रोको
फिर वो अरमान हम-आग़ोशी का जज़्ब-ए-गुस्ताख़आह वो रात वो सलमा से मुलाक़ात की रात
उन गुस्ताख़ लम्हों मेंसंजोया है जिन्हें दिल के निहाँ खानों में
इक सुर्ख़ शक्ल उभरीशरीर गुस्ताख़ बे-तकल्लुफ़
और हवाओं के हाथ हैं गुस्ताख़तोड़े लेते हैं नन्हे शोले को
चुपके से ख़ंजर उतार देता हूँकिसी गुस्ताख़ जज़्बे को
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