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नज़्म
ख़ुद अपने चारागर से हाल-ए-सई-ए-रायगाँ कहूँ
कहूँ कि क्यूँ फ़सुर्दगी है ख़ेमा-ज़न बहार में
शाहिद मलिक
नज़्म
टुकड़े होता है जिगर देहली के सदमे सुन के 'ऐश'
और दिल फटता है सुन कर हाल-ए-ज़ार-ए-लखनऊ
हकीम आग़ा जान ऐश
नज़्म
सच है असरार-ए-हक़ीक़त का ख़ज़ाना तू है
हाल-ओ-मुस्तक़बिल-ओ-माज़ी का ज़माना तू है