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नज़्म
हर्फ़-ए-हक़ दिल से ज़बाँ तक ला रहा हूँ आज-कल
क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन दोहरा रहा हूँ आज-कल
मासूम शर्क़ी
नज़्म
गुलू-ए-कुश्ता से बेहिस ज़बान-ए-ख़ंजर से
सदा लपकती है हर सम्त हर्फ़-ए-हक़ की तरह
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
मोहम्मद इज़हारुल हक़
नज़्म
चमकते हुए सब बुतों को मिटा दो
कि अब लौह-ए-दिल से हर इक नक़्श हर्फ़-ए-ग़लत की तरह मिट चुका है
फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी
नज़्म
अभी तहज़ीब-ए-अदल-ओ-हक़ की कश्ती खे नहीं सकती
अभी ये ज़िंदगी दाद-ए-सदाक़त दे नहीं सकती
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
रख भी दे अब इस किताब-ए-ख़ुश्क को बाला-ए-ताक़
उड़ रहा है रंग-ओ-बू की बज़्म में तेरा मज़ाक़