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नज़्म
यूँही बस यूँही 'ज़ेनू' ने यकायक ख़ुद-कुशी कर ली
अजब हिस्स-ए-ज़राफ़त के थे मालिक ये रवाक़ी भी
जौन एलिया
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
अजब नहीं मिरे लफ़्ज़ मुझ को मुआ'फ़ कर दें
हवा-ओ-हिर्स-ओ-हवस की सब गर्द साफ़ कर दें
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
सच बता तू भी है क्या ऐ कुश्ता-ए-सद-हिर्स-ओ-आज़
राज़-दान-ए-काकुल-ए-शब-रंग ओ चश्म-ए-नीम-बाज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
न इस का कोई मस्लक है न इस का कोई मज़हब है
दिल-ए-हर्स-ओ-हवस में बन के रहती है ये चिंगारी
रहबर जौनपूरी
नज़्म
तुम गुमराही फैलाओ हम क़ुरआन सुनाते जाएँगे
तुम हिर्स बढ़ाते जाओ हम ईमान बढ़ाते जाएँगे