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नज़्म
तू हुसूल-ए-ज़र की ख़ातिर किस क़दर बेचैन है
कसब-ए-दौलत ज़िंदगी का तेरी नसबुलऐन है
माहिर-उल क़ादरी
नज़्म
पूछते हैं वो मुझे क्यों इन किताबों से है इश्क़
हो न माली मंफ़अत का जिन के पढ़ने से हुसूल
अख़तर बस्तवी
नज़्म
परतव रोहिला
नज़्म
मोहब्बत जिस में लग़्ज़िश भी हुसूल-ए-कामरानी है
मोहब्बत जिस की हर काविश सुरूर-ए-जावेदानी है
ऋषि पटियालवी
नज़्म
हक़ीक़त का तक़ाज़ा है हो दिल को जुस्तुजू पहले
हुसूल-ए-मुद्दआ को चाहिए कुछ आरज़ू पहले