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नज़्म
उम्मतें और भी हैं उन में गुनहगार भी हैं
इज्ज़ वाले भी हैं मस्त-ए-मय-ए-पिंदार भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कोई जबीं न तिरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो इज्ज़-ए-ग़ुरूर-ए-सुल्ताँ भी जिस के आगे झुक जाता था
वो मोम कि जिस से टकरा कर लोहे को पसीना आता था
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
यही क़ौमों को पहुँचाता है बाम-ए-औज-ओ-रिफ़अत पर
यही मुल्कों के अंदर फूँकता है रूह-ए-बेदारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
आशिक़ाँ कहते हैं माशूक़ों से बा-इज्ज़-ओ-नियाज़
है अगर मंज़ूर कुछ लेना तो हाज़िर हैं रूपे
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तुम्हारा इज्ज़-ए-बयाँ, बयाँ का ग़ुरूर कुछ भी नहीं रहेगा
तुम इस घड़ी जो सुना रहे हो
सय्यद मुबारक शाह
नज़्म
बे-कराँ इज्ज़ की जाँ-सोख़्ता वीरानी में
जिस में उगते नहीं दिल-सोज़ि-ए-इंसाँ के गुलाब
नून मीम राशिद
नज़्म
मद्ह-ख़्वाँ उस का तू हो 'बर्क़' ब-सद इज्ज़-ओ-नियाज़
ख़ाकसारों के मदद-गार गुरु-नानक थे