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नज़्म
मुफ़्लिसी और ये मज़ाहिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों सुल्तान-ए-जाबिर हैं नज़र के सामने
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये देखते ही हुजूम बिफरा भड़क उठे यूँ ग़ज़ब
कि शोले के जैसे नंगे बदन पे जाबिर के ताज़ियाने
नून मीम राशिद
नज़्म
जाबिर का तशद्दुद सहते हैं उल्फ़त में धोका खाते हैं
जो हम से नफ़रत करते हैं हम उन के नाज़ उठाते हैं
अमीर चंद बहार
नज़्म
न अब गुलचीं है ख़ोशा-चीं न वो सय्याद जाबिर है
जो था ना-मेहरबाँ अब हो रहा है मेहरबाँ अपना
राम लाल वर्मा हिंदी
नज़्म
मेरा दिल रत्ल-ए-गिराँ मेरी निगाहें दूरबीं
मेरे क़दमों पर झुकाई माह-पारों ने जबीं
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं