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नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
हत्ता कि अपने ज़ोहद-ओ-रियाज़त के ज़ोर से
ख़ालिक़ से जा मिला है सो है वो भी आदमी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो बिजली है जला सकती है सारी बज़्म-ए-इम्काँ को
अभी मेरे ही दिल तक हैं शरर-सामानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
शायद इस झोंपड़े की छत पे ये मकड़ी मिरी महरूमी की
जिसे तनती चली जाती है वो जाला तो नहीं हूँ मैं भी?
नून मीम राशिद
नज़्म
मैं अक्सर उन के तसव्वुर में डूब जाता था
वफ़ूर-ए-जज़्बा से हो जाती थी मिज़ा पुर-नम