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नज़्म
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
दिल तड़प कर कह रहा है जल्द इस दुनिया को छोड़
चूड़ियाँ तोड़ीं तो फिर ज़ंजीर-ए-हस्ती को भी तोड़
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
तुम्हारे क़ौम के बच्चों में है तालीम का फ़ुक़्दाँ
ये गुत्थी सख़्त पेचीदा है इस को जल्द सुलझाओ
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
आँखों से ख़ून टपकता है सीने पर ख़ंजर चलता है
मन-मोहन जल्द ख़बर लेना दीनों की जान बचाने को