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नज़्म
बर्फ़ में रखी ठंडी मीठी फाँकें सब को भाएँ
ठेलों गलियों बाज़ारों में अपना रंग जमाएँ
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
लम्बी लम्बी मूँछें रख लें सब पर रो'ब जमाएँ
करते जाएँ मन-मानी और हरगिज़ न घबराएँ
मोहम्मद असदुल्लाह
नज़्म
जहान-ए-आब-ओ-गिल से आलम-ए-जावेद की ख़ातिर
नबुव्वत साथ जिस को ले गई वो अरमुग़ाँ तू है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस ने इस का नाम रखा था जहान-ए-काफ़-अो-नूँ
मैं ने दिखलाया फ़रंगी को मुलूकियत का ख़्वाब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गोशा-ए-दिल में छुपाए इक जहान-ए-इज़तिराब
शब सुकूत-अफ़्ज़ा हवा आसूदा दरिया नर्म सैर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शौकत-ए-संजर-ओ-सलीम तेरे जलाल की नुमूद!
फ़क़्र-ए-'जुनेद'-ओ-'बायज़ीद' तेरा जमाल बे-नक़ाब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मगर मैं तो दूर एक पेड़ों के झुरमुट पे अपनी निगाहें जमाए हुए हूँ
न अब कोई सहरा न पर्बत न कोई गुलिस्ताँ
मीराजी
नज़्म
वो फ़राएज़ का तसलसुल नाम है जिस का हयात
जल्वा-गाहें उस की हैं लाखों जहान-ए-बे-सबात