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नज़्म
हर गाली, मिस्री, क़ंद-भरी, हर एक क़दम अटखेली का
दिल शाद किया और मोह लिया ये, जौबन पाया होली ने
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
फिर गुनगुनाती ज़ुल्मतों का सेहर हर-सू छा गया
बादल कहीं गुम होगए तारों पे जौबन आ गया
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
सोती रात का जादू चलता खिंचते हुए दामन की ओट
चाँद का जौबन छलका पड़ता सागर प्यासा होता था
शहाब जाफ़री
नज़्म
हड्डी पे चेहरे चेहरों पे आँखें आई जवानी चली
टीलों पे जौबन रेवड़ के रेवड़ खेतों पे झालर चढ़ी
महबूब ख़िज़ां
नज़्म
नैना आदिल
नज़्म
शुक्र है अगले वक़्तों की बेटी के ऐसे ढंग न थे
लाज ही उस का जौबन थी और लाज ही उस का गहना थी