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नज़्म
दरख़्तों की घनी छाँव में जा कर लेट जाता है
हवा के तेज़ झोंके जब दरख़्तों को हिलाते हैं
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
कोई जबीं न तिरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
बसंत आया तो यूँ आया कि मैं भी जैसे उठ बैठा
सवेरा होते ही हर सम्त से झोंके हवाओं के
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
फ़ज़ा में मौत के तारीक साए थरथराते हैं
हवा के सर्द झोंके क़ल्ब पर ख़ंजर चलाते हैं