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नज़्म
दिया रोना मुझे ऐसा कि सब कुछ दे दिया गोया
लिखा कल्क-ए-अज़ल ने मुझ को तेरे नौहा-ख़्वानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इस गुल-कदा-ए-पारीना में फिर आग भड़कने वाली है
फिर अब्र गरजने वाले हैं फिर बर्क़ कड़कने वाली है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दरिया में उन के मुर्दे बहाती है मुफ़्लिसी
बीबी की नथ न लड़कों के हाथों कड़े रहे
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो रोज़ काग़ज़ पे अपना चेहरा लिखता और गंदा होता
उस की औरत जो ख़ामोशी काढ़े बैठी थी
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
मिरी आँखों में आँखें डाल कर जब मुस्कुराती थी
मिरे ज़ुल्मत-कदे का ज़र्रा ज़र्रा जगमगाता था