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नज़्म
कह रही है मेरी ख़ामोशी ही अफ़्साना मिरा
कुंज-ए-ख़ल्वत ख़ाना-ए-क़ुदरत है काशाना मिरा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
ये फूलों की हसीं आबादियाँ काशाना थीं उस का
अख़्तर शीरानी
नज़्म
नज़र आती है जिस को ख़्वाब में वो सूरत-ए-दिलकश
वो अपना दिल बना लेता है काशाना कनहैया का
जूलियस नहीफ़ देहलवी
नज़्म
शेर की ख़ल्वत-ए-रंगीं थी परी-ख़ाना तिरा
मस्त ख़्वाबों के जज़ीरों में था काशाना तिरा
अख़्तर शीरानी
नज़्म
दिल मसर्रत की फ़रावानी से दीवाना है आज
देखना ये कौन आख़िर ज़ेब-ए-काशाना है आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अज़ीमुश्शान बस्ती है ये नौ-आबाद वीराना
यहाँ हम अजनबी दोनों हैं मैं और मेरा काशाना
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
राहत सुना रही थी अफ़्साना सल्तनत का
थी माँ की गोद मुझ को काशाना सल्तनत का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ का काशाना
तो क्या हम्द ओ सलाम ओ नात लिक्खूँ ये नहीं मुमकिन
सलाम मछली शहरी
नज़्म
बर्बाद मुर्ग़-ए-दिल का काशाना कर दिया है
ख़ाली मय-ए-तरब से पैमाना कर दिया है