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नज़्म
उठ रही है कहीं क़ुर्बत से तिरी साँस की आँच
अपनी ख़ुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मिरे क़ामत से अब क़ामत तुम्हारा कुछ फ़ुज़ूँ होगा
मिरा फ़र्दा मिरे दीरोज़ से भी ख़ुश नुमूं होगा
जौन एलिया
नज़्म
अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अब मैं वो जज़्बा-ए-मासूम कहाँ से लाऊँ
मेरे साए से डरो तुम मिरी क़ुर्बत से डरो
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
वो यहूदी फ़ित्ना-गर वो रूह-ए-मज़दक का बुरूज़
हर क़बा होने को है इस के जुनूँ से तार तार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस के पर्दों में नहीं ग़ैर-अज़-नवा-ए-क़ैसरी
देव-ए-इस्तिब्दाद जम्हूरी क़बा में पा-ए-कूब