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नज़्म
और अब ये राह-गुज़र भी है दिल-फ़रेब ओ हसीं
है इस की ख़ाक में कैफ़-ए-शराब-ओ-शेर मकीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फूट निकला दर-ओ-दीवार से सैलाब-ए-नशात
अल्लाह अल्लाह मिरा कैफ़-ए-नज़र आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है
मिरी फ़ितरत को ख़ूँ-रेज़ी के अफ़्साने से रग़बत है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये कैफ़-ओ-रंग-ए-नज़ारा ये बिजलियों की लपक
कि जैसे कृष्ण से राधा की आँख इशारे करे
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ये कैफ़ क्या है कि साँस रुक रुक के आ रहा है
ये मेरी आँखों में कैसे शहवत-भरे अँधेरे उतर रहे हैं
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
सुरूर-ओ-कैफ़ की मिलती है उस को लज़्ज़त-ए-दाइम
लगा लेता है होंटों से जो पैमाना कनहैया का
जूलियस नहीफ़ देहलवी
नज़्म
तेरे ही नग़्मे से कैफ़-ओ-इम्बिसात-ए-ज़िंदगी
तेरी सौत-ए-सरमदी बाग़-ए-तसव्वुफ़ की बहार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुंतज़िर हैं तुम्हारे शिकारी वहाँ कैफ़ का है समाँ
अपने जल्वों से महफ़िल सजाने चलो मुस्कुराने चलो
हबीब जालिब
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
ज़र्रात में कलियर के फ़रोज़ाँ तिरी तस्वीर
हांसी की फ़ज़ाओं में तिरे कैफ़ की तासीर