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नज़्म
कि दिल में अइज़्ज़ा की अम्वात की ख़्वाहिशें भी दबी हैं
कई बे-गुनह गर्दनें उँगलियों में फँसी हैं
ग़ज़नफ़र
नज़्म
कभी हाल-ए-कजी पूछा है मसहूर-ए-क़बाहत से
कभी दश्त-ए-जुनूँ पाटा है जज़्बात-ए-इरादत से
मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां
नज़्म
हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महँगी मदिरा है जो क़तरा क़तरा बटती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो सूद-ए-हाल से यकसर ज़ियाँ-काराना गुज़रा है
तलब थी ख़ून की क़य की उसे और बे-निहायत थी