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नज़्म
सदाक़त-ए-अस्र भी यही हैं कराहत-ए-जब्र भी यही हैं
अलामत-ए-दर्द भी यही हैं करामत-ए-सब्र भी यही हैं
उबैदुल्लाह अलीम
नज़्म
कहते हैं आज़ाद हो जाता है जब लेता है साँस
याँ ग़ुलाम आ कर करामत है ही इंग्लिस्तान की
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
तुम्हारी आँखें ख़ुशी की ख़्वाहिश लिए हुई थीं
तुम्हारी सोचों में अहद-ए-माज़ी की सिलवटें थीं
करामत बुख़ारी
नज़्म
उस चश्म-ए-मस्त में थी ये तुर्फ़ा इक करामत
फिरती वो जिस तरफ़ को फिरता उधर ज़माना