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नज़्म
निगार-ए-शाम-ए-ग़म मैं तुझ से रुख़्सत होने आया हूँ
गले मिल ले कि यूँ मिलने की नौबत फिर न आएगी
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
निगार-ए-शाम-ए-ग़म मैं तुझ से रुख़्सत होने आया हूँ
गले मिल ले कि यूँ मिलने की नौबत फिर न आएगी
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
अगर ऐ शम'-ए-दिल जलना ही था तुझ को तो जलना था
किसी बेकस की तुर्बत पर चराग़-ए-नीम-जाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
मन के मंदिर को मुनव्वर करे नूर-ए-इस्लाम
का'बा-ए-दिल में रहे शाम-ओ-सहर राम का नाम