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नज़्म
कल कोई मुझ को याद करे क्यूँ कोई मुझ को याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिए क्यूँ वक़्त अपना बर्बाद करे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
किताब-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा की फिर शीराज़ा-बंदी है
ये शाख़-ए-हाशमी करने को है फिर बर्ग-ओ-बर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
और कुछ देर में जब फिर मिरे तन्हा दिल को
फ़िक्र आ लेगी कि तन्हाई का क्या चारा करे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरी चीन-ए-जबीं ख़ुद इक सज़ा क़ानून-ए-फ़ितरत में
इसी शमशीर से कार-ए-सज़ा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हो सदाक़त के लिए जिस दिल में मरने की तड़प
पहले अपने पैकर-ए-ख़ाकी में जाँ पैदा करे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कोई जबीं न तिरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तअ'ज़ीम जिस की करते हैं तो अब और ख़ाँ
मुफ़्लिस हुए तो हज़रत-ए-लुक़्माँ किया है याँ