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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जहाँ में हर तरफ़ है इल्म ही की गर्म-बाज़ारी
ज़मीं से आसमाँ तक बस इसी का फ़ैज़ है जारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
भैंस के कान से काला कव्वा जूएँ चुगता जाता है
बोली भैंस कि ''ऐ कव्वे क्यूँ मेरे कान तू खाता है''
जमील उस्मान
नज़्म
लड़ने लगी फिर मुझ से वो बिल्क़ीस की बच्ची
इस डिबिया का ढकना तो है बिल्कुल पच्ची