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नज़्म
''बला-कशान-ए-मोहब्बत पे जो हुआ सो हुआ
जो मुझ पे गुज़री मत उस से कहो, हुआ सो हुआ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ग़रीबों मुफ़लिसों को बे-कसों को बे-सहारों को
सिसकती नाज़नीनों को तड़पते नौ-जवानों को
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जो नौजवाँ हैं उन की तय्यारियाँ बड़ी हैं
हाथों में लाल छड़ियाँ कोठों पे वो खड़ी हैं