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नज़्म
वो बर्फ़-बारियाँ हुईं कि प्यास ख़ुद ही बुझ गई
मैं साग़रों को क्या करूँ कि प्यास की तलाश है
आमिर उस्मानी
नज़्म
तितली का नाज़-ए-रक़्स ग़ज़ाला का हुस्न-ए-रम
मोती की आब गुल की महक माह-ए-नौ का ख़म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
यहीं की ख़ाक से उभरे थे 'प्रेमचंद' ओ 'टैगोर'
यहीं से उठ्ठे थे तहज़ीब-ए-हिन्द के मेमार
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मिरे तमाम दोस्त अजनबी रफ़ाक़तों में गुम
मिरी नज़र में तेरे ख़द्द-ओ-ख़ाल तेरे ख़्वाब थे
अहमद फ़राज़
नज़्म
हिल्म के साँचे में रूह-ए-नाज़ को ढाले हुए
गर्दनों में ख़म सरों पर चादरें डाले हुए