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नज़्म
रात में जिन के बच्चे बिलकते हैं और
नींद की मार खाए हुए बाज़ुओं में सँभलते नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इक बहन अपनी रिफ़ाक़त की क़सम खाए हुए
एक माँ मर के भी सीने में लिए माँ का गुदाज़
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
नदिया के गहरे पानी में खाए न कई दिन से ग़ोते
घर ही में पड़े अब सड़ते हैं नदिया पे नहाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
शौकत परदेसी
नज़्म
ज़ख़्म खाए हुए मज़दूर के बाज़ू भी तो हैं
ख़ाक और ख़ून में ग़लताँ हैं नज़ारे कितने